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जीवन को संदेश देने वाला प्रकाश का त्यौहार है दीपावली


भारत परम्पराओं का देश है। देश की संस्कृति के दर्शन इन्ही पारम्परिक त्योहारों में होते हैं। बुराई का अन्त को होलिका दहन,असत्य पर सत्य की विजय विजयदशमी व अंधकार को मिटाने का संकल्प दीपावली ये सभी त्योहार कहीं न कहीं हमारे सांस्कारिक भाव एवं संस्कृति के द्योतक हैं। हर वर्ष इन त्योहारों को मनाने का मतलब ही है कि हम अपने कर्त्‍तव्‍यों व संस्कारों को याद रखें और हजारों साल से इस परम्परा को चलने के पीछे आने वाली पीढियों का जानकारी दी जाय। आईये हम प्रकाश के इस पर्व के बारे में चर्चा करते हैं। देश दीपावली का पर्व पांच दिनों का होता है, इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है और समापन भैया दूज को होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है। दीपावली कब से प्रारंभ हुई इसके संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन कथाओं के साथ जुड़ी घटनाएं दीपावली के महत्व को बढ़ाती हैं। आइए जानते हैं कि दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है धार्मिक पुस्तक रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन उनके स्वागत व अभिनन्दन हेतु पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या नगरी में आगमन पर दीपावली मनाई गई थी,पूरे देश के हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे। हर तरफ खुशी का माहौल था ।तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर विजय का त्यौहार बन गया लोग हर वर्ष इस तिथि पर दीपक जलाकर दीपावली मनाने लगे।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में पहली दीपावली मनाई गई थी। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि अर्थात् धनतेरस को समुद्र मंथन से देवताओं के वैद्य धनवन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। धनवन्तरि के जन्मदिवस के कारण धनतेरस मनाया जाने लगा, यह दीपावली का पहला दिन होता है। वे मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक थे। उनके बाद धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, जिनका स्वागत दीपोत्सव से किया गया था।भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से प्रागज्योतिषपुर नगर के असुर राजा नरका सुर का वध किया था। नरका सुर को स्त्री के हाथों वध होने का श्राप मिला था। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। नरका सुर के आतंक और अत्याचार से मुक्ति मिलने की खुशी में लोगों ने दीपोत्सव मनाया था, इसलिए हर वर्ष चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी। इसके अगले दिन दीपावली मनाई गई। आईये हम सभी मिलकर देश ही नहीं अपने जीवन का अंधेरा मिटायें और अपने अन्‍द रबैठे अंधकार रूपी बुराईयों को भगाने का कार्य करें,जिससे जीवन में एक नया प्रकाश प्रज्‍जवलित हो। इसी के साथ आप सभी शुभेच्‍छु सुधी पाठको दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें----
                                                             

                                                *HAPPY DEEPAWALI* 



BLOGGER- @NEERAJ SINGH

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