SURYA PARKASH SINGH-sp-singh
१७ नवम्बर के बाद नयी पार्टी की घोषणा तय है … मैंने यह बात १५ दिन पहले ही कह दिया था। यह आज अंदर की बात लिख रहा हूँ…विश्वास करें।
अखिलेश यादव सपा का असली चुनावी फ़ेस है। मुलायम या शिवपाल का समय जा चुका है, इनके पास क्रिमिनल तत्वों के सिवाय कुछ नही है। सपा के ख़िलाफ़ anti-incumbency फ़ैक्टर इतना ज़बरदस्त है कि इनकी सत्ता में वपिसी असम्भव है। भ्रष्टाचार, अनाचार से जनता त्रस्त है। परंतु यदि अखिलेश नयी पार्टी बनाते हैं तो भाजपा के लिए एक मुसीबत खड़ा होना लाज़मी है।
अखिलेश आज सपा में अलग थलग है और एक बेबस व बेचारे की भूमिका में है। सपा में अब चाचा व भतीजे का एक साथ रहना असम्भव है।शिवपाल आज अपनी संगठन में पकड़ की बात करते है और बाहरी लोग यह मानते भी है। लेकिन सच यह है कि अखिलेश के फ़ेस के बिना अब सपा सत्ता में वापसी नही कर सकती।
अखिलेश को यदि हीरो बनना है और अपनी अलग पहचान बनानी है तो यह सही समय है कि सपा व अपने दाग़ी परिवार को लात मारकर नयी पहचान बनाए .. नयी पार्टी बनायें…..और वे ऐसा ही करने जा रहे हैं।
मुलायम के बाद वैसे भी चाचा व मुलायम का नया परिवार अखिलेश को अलग कर ही देंगे। अच्छा है कि मुख्यमंत्री रहते अखिलेश स्वयं यह निर्णय ले लें।
ऐसा करने के लिए अखिलेश को इस्तीफ़ा देकर care taker मुख्यमंत्री बने रहने की ज़रूरत नहीं है। अपितु लोगों को सहानुभूति पाने के लिए मुलायम को अपने को बर्खास्त करने दें… जिससे माँ की मृत्यु के बाद सौतेली माँ द्वारा पदच्युत कराने …,घर से बाहर निकवाने व पिता द्वारा अनाथ छोड़ने से और भी सहानुभूति पैदा होगी। अखिलेश एक winner बनकर उभर सकते हैं।
इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते पुरानी कांग्रेस के मठाधीशों को लात मारकर सफलता पूर्वक Congress(I) बनायी थी उसी तरह मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अखिलेश को अब बदनाम दाग़ी परिवार से किनारा कर नयी पार्टी बनाना ही चाहिए …. सफल होने की पूरी सम्भावना है। यदि मुख्यमंत्री पद से चुनाव बाद हार कर या इस्तीफ़ा देकर पार्टी बनाते है तो सफल होने में शंका रहेगी क्यों कि सहानुभूति व त्याग की लहर जो अब मिल सकती है वह बाद में लुप्त हो जाएगी।
नयी पार्टी सपा(अखिलेश) की घोषणा की प्रतीक्षा करें। यदि ऐसा होता है तो भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी होगी।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें