सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शर्मसार हुआ लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है| विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्‍तंभ माना जाता है| इसमें चौथे स्‍तंभ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया|जनता के लिए दर्पण का कार्य करने वाली ,सच्चाई को उजागर करने वाली मीडिया क्या अपने दायित्व की तरफ से मुख मोड चुकी है। ये केवल राजनीतिक दलों व उनकी सरकारों के हाथ कठपुतली बन कर रह गई है। जबकि लोकतांत्रिक देश में इनकी महती भूमिका होती है। जनता से सरोकार रखने वाले अहम मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने का काम मीडिया करती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आजादी से लेकर अब तक लोकतंत्र को चलाने में मीडिया का सहयोग रहा है, इससे किंचित मात्र विमुख नही हो सकते हैं। हां ये जरूर है कि आजादी के समय की मीडिया और वर्तमान समय की मीडिया में बहुत फर्क दिखने लगा है। मीडिया व्यवसायीकरण होता जा रहा है।आज बडे पूंजीपतियों के हाथों मीडिया की लगाम है। जहां फायदा मिलता है वैसा ही खबर बनता है। ये जनता पर क्या असर डालेगी इससे मतलब नही रह जाता है। अभी बिगत दिनों दशहरा के मौके पर पश्चिम बंगाल में दो संप्रदायों के बीच तनाव फैल गया। जोकि धीरे धीरे कई जिलों में सामप्रदायिक दंगे होने लगे। करीब एक सप्ताह बीतने को है पं0 बंगाल में आगजनी,संर्घष की घटनायें हो रही हैं बहुसंख्यकों के सैकडों घर जल रहें लोग मर रहे हैं हजारों की तादात में घायल हो रहे हैं, वहां ममता बनर्जी सरकार चुप्पी साधे हुए है। इसका खुलासा तब हुआ जब एक राष्ट्रीय चैनल ने जोर शोर से उठाया।ं बडे शर्म की बात है कि बंगाल से निकलने वाले अखबार,व चैनल भी चुप्पी मार कर बैठे हैं और दिल्ली के अखबार थोडा बहुत जरूर लिखा है। लागों के हालात पर अगर हमारी मीडिया चुप्प मार बैठे तो इससे शर्म की और क्या बात है।क्योंकि चैनल पर चल रहे डिबेट पर टीएमसी नेता बडे फक्र से स्थानीय अखबारों की प्रतियां लहरा रहे थे कि इसमें कुछ नही लिखा है। दादारी कांड से आप वाकिफ हैं कि इसे लेकर देशभर की मीडिया व राजनीतिक दल खूब हो हल्ला किये। लेकिन पं0 बंगाल में जो बहुसंख्यक मर रहे हैं उन पर मुख्यमंत्री ममता सहित सभी सेकुलर पार्टियां और चैनल चुप हैं। ममता जैसी तेजतर्रार नेता वोट के लिए दंगो को चुपचाप देख रही हैं और सेकुलर का नाटक कर रही हैं। क्या लोकतंत्र के लिए सही है,नहीं बिलकुल नही है हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाई,जैन, बौद्ध जैसे कोई धर्म को मानने वाला हो उसके साथ समानता के व्यवहार के साथ साथ उस पर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। वोट की खातिर अन्याय को बढावा देना बहुत ही गलत बात है इस पर हम सभी पार्टीयों व देश की आवाम को सोचना चाहिए। मीडिया को भी अपनी भूमिका व्यवसायी करण के चलते नही भूलना चाहिए। वरना पं0 बंगाल के मीडिया तरह बार बार शर्मसार होना पडेगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक कानून दो व्यवस्था कब तक !

हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर  आमजन  कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर  बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह

आओ मनाएं संविधान दिवस

पूरे देश में  संविधान दिवस मनाया जा रहा है। सभी वर्ग के लोग संविधान के निर्माण दिवस पर अनेकों ने कार्यक्रम करके संविधान दिवस को मनाया गया। राजनीतिक पार्टियों ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की चित्र पर माल्यार्पण कर संगोष्ठी कर के संविधान की चर्चा करके इस दिवस को गौरवमयी बनाने का का प्रयास किया गया। प्रशासनिक स्तर हो या  फिर विद्यालयों में बच्चों द्वारा शपथ दिलाकर निबंध लेखन चित्रण जैसी प्रतियोगिताएं करके दिवस को मनाया गया। बताते चलें कि 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान मसौदे को अपनाया गया था और संविधान लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ था। संविधान सभा में बनाने वाले 207 सदस्य थे इस संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी थे। इसलिए इन्हें भारत का संविधान निर्माता भी कहा जाता है । विश्व के सबसे बड़े संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को समिति की स्थापना हुई थी । जिसकी अध्यक्षता डॉ भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में समिति गठित गठित की गई थी । 19 नवंबर 2015 को राजपत्र अधिसूचना के सहायता से

अपनो के बीच हिंदी बनी दोयम दर्जे की भाषा !

  हिंदी दिवस पर विशेष---  जिस देश में हिंदी के लिए 'दो दबाएं' सुनना पड़ता है और 90% लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं..जहाँ देश के प्रतिष्ठित पद आईएएस और पीसीएस में लगातार हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ हो रहा अन्याय और लगातार उनके गिरते हुए परिणाम लेकिन फिर भी सरकार के द्वारा हिंदी भाषा को शिखर पर ले जाने का जुमला।। उस देश को हिंदी_दिवस की शुभकामनाएं उपरोक्त उद्गगार सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक प्रतियोगी की है। इन वाक्यों में उन सभी हिंदी माध्यम में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे प्रतिभागियों की है । जो हिन्दी साहित्य की दुर्दशा को बयां कर रहा है। विगत दो-तीन वर्षों के सिविल सेवा के परिणाम ने हिंदी माध्यम के छात्रों को हिलाकर रख दिया है। किस तरह अंग्रेजियत हावी हो रही है इन परीक्षाओं जिनमें UPSC व UPPCS शामिल है इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। हाल ही में दो दिन पूर्व UPPCS की टॉप रैंकिंग में हिन्दी माध्यम वाले 100 के बाहर ही जगह बना पाए । जो कभी टॉप रैंकिंग में अधिकांश हिंदी माध्यम के छात्र सफल होते थे । लेकिन अब ऐसा नही है। आज लाखों हिंदी माध्यम के प्रतिभागियों के भव