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जरा कोई मेरी भी सुनो

 



विश्व पटल पर महाशक्ति के रूप में उभरने वाला भारत देश  आज पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा रहा है। विश्व में कोई भी देश इस स्थिति में नहीं है कि भारत देश  की अनदेखी कर सकता हो। हर क्षेत्र में  भारत ने नया आयाम स्थापित किया है। देश की मोदी सरकार अनेक कार्यकलापों के कारण हमेशा में चर्चा में रहती है। इस सरकार  के कार्यकाल में तीन तलाक,  धारा 370,  राम मंदिर निर्माण जैसे ज्वलंत मुद्दों का भी निस्तारण हुआ है। 2014 में युवाओं ने मोदी सरकार को इस उम्मीद से गद्दी पर बैठाया था  कि घटते रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जाए, नौकरियां उपलब्ध कराई जाए जिससे बेरोजगार युवाओं के हाथों में रोजगार मिले। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा आज स्थित उलट है, रोजगार मिलने के बजाय रोजगार भी बेरोजगार हो रहे हैं। इसे लेकर पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। सोशल साइटों पर इसका असर दिखने लगा है। इसलिए सरकार को इस ज्‍वलंत मुद्दे को अनदेखा करना भारी पड़ सकता है। सरकार भले ही कोरोना वायरस जैसी महामारी का बहाना बनाएं । लेकिन भाजपा सरकार के आने के बाद से ही जिस प्रकार सरकारी नौकरियों की घटती संख्या व परीक्षाओं में लेटलतीफी करना जारी है, ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण  बात है।

 युवाओं का कहना है आप सब कुछ सही कर रहे हैं, लेकिन नौकरी भी जरूरी है, वरना पढ़ लिख कर भी पकौड़ी  तलेंगे या फिर भीख का कटोरा हाथ में होगा। अब और सहन नहीं हो रहा है। युवा बेरोजगार गुहार लगा रहे हैं कि कोई मेरी भी सुनो----। न सरकार सुन रही न ही देश की मीडिया ही सुन रही है, इससे दुखद युवाओं की हालात क्‍या हो सकती है। अब जरा हम विगत वर्षों  के रोजगार व नौकरी के अवसरों पर नजर डालते हैं। भाजपा सरकार आने के पहले 2011-12 में नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ (NSSO) की रिपोर्ट में बेरोजगारी की दर 2.2% थी। इसी संस्था ने 2017-2018 की रिपोर्ट में देश मे बेरोजगारी की दर 6.1 ℅ बताया। वहीं मार्च 2020 में  बढ़कर 7.78℅ हो गई है ,जोकि कि बेरोजगारी की दर में एक बड़ी उछाल थी ।जो देश व सरकार दोनों के लिए चिंता की बात थी।  सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी(CMEE) के आंकडों के अनुसार कोरोना काल मे देश मे लगे लॉकडाउन में बेरोजगारी दर ने बडी उछाल लगाते हुए मई माह शुरुआत में ही 27.1% पहुंच गई। देश में 12 करोड़ से अधिक लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। इसका बडा प्रहार असंगठित क्षेत्रो पर हुआ।संगठित क्षेत्र भी इससे अछूते नही रहे।आज देश मे कुल आबादी का एक तिहाई हिस्सा यानी लगभग 35% युवाओं की है। जिसमे हर साल करीब दो करोड़ युवाओं के पास नौकरी या रोजगार के लिए हाथ-पैर मारते हुए दिखते हैं। जिस देश मे हर वर्ष दो करोड़ की आबादी बिना काम के होती है, उस देश का भविष्य क्या होगा सोचनीय तथ्य है। 

     अब बात करें सरकार की जिन्होंने युवाओं को छ:वर्ष पूर्ब बहुत सारे सपने दिखाया था।   2014 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के युवाओं से यह वादा किया था कि हमारी सरकार बनेगी तो हर वर्ष दो  करोड़ नौकरियां देंगे। लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है,  जो कि एक विचारणीय पहलू है । 2019 आते-आते बेरोजगारी की दर देश आजाद होने के बाद सबसे अधिक  हो गई है ।ऐसा तो 1972 या फिर 1991 की महामंदी में भी नही हुआ था। वहीं नौकरियों के अवसर भी घटते जा रहे हैं । जिन नौकरियों में हजारों पद होते थे, आज सैकड़ों में सिमट कर रह गये हैं। एसएससी,रेलवे की परीक्षाएं होती हैं।  लेकिन उनके परिणाम नहीं निकल रहे हैं । दो-दो, तीन-तीन साल से  परीक्षार्थी रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं। जो निकलती ही हैं, वो कोर्ट के भेंट चढ़ जा रही हैं। एसएससी की परीक्षा2018 में हुई आज भी रिजल्ट नही आयारेलवे के पदों के लिए 2019 में 25 करोड़ से अधिक युवाओं ने फार्म भरे थे,आज तक परीक्षा सरकार नही करा सकी है। वहीं देश सबसे बड़े राज्य यूपी में कई भर्तियां कोर्ट में लटकी हैं। जिसमें 69 हजार की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया शामिल है। संघ लोकसेवा आयोग में भी हजारों की संख्या में पद निकलते थे,  आज सैकड़ों में हो गया है, जबकि इस परीक्षा में लाखों अभ्यार्थी भाग लेते हैं, वहीं यूपी की यूपीएससी में भी पद काफी कम निकल रहे हैं ,पहले डेढ़ से दो हजार पद भरे जाते थे,लेकिन इस वर्ष दो सौ सीट ही है। 

      उक्त भर्तियों में भी एक  रोचक तथ्य सामने आया है कि विगत वर्षों में हिंदी माध्यम के आईएएस अधिकारी की दौड़ में काफी पीछे रैंक में आ रहे हैं। उधर बीजेपी नीति सरकार नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा शुरुआत की कक्षाएं संचालन पर जोर दिया है।और हिंदी पर बल देती है। लेकिन हिंदी माध्यम की जो गति हो रही है,ये सरकार की दोहरी नीति का उजागर कर रही है।उपरोक्त उदाहरण बानगी भर हैं। वर्तमान परिस्थितियों में युवाओं में रोजगार के अवसर व नौकरियों के घटने से सरकार के प्रति काफी आक्रोश व्याप्त है ।इसका असर विगत कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को सोशल साइट्स टिवटर पर देखने को मिला, जिसमें 2.5 करोड़ ने लाइक किया और 3.5 करोड़ ने डिसलाइक किया । जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। इतना ही नही ट्विटर पर  नौकरियों की तैयारी कर रहे छात्रों व कोचिंग संस्थानों ने # करते हुए सरकार के कार्यों की तारीफ़ करते हुए नौकरी की मांग कर ट्वीट किया है जिसमें करीब 45 लाख ट्वीट हो चुके हैं। अगर इन परिस्थितियों में भी केंद्र व राज्य सरकारें   नही समझी व नही चेती तो उनके लिए ये मुद्दा आने वाले समय में भारी पड़ेगा। क्योंकि अब सारे मुद्दे व कार्य एक तरफ बेरोजगारी का मुद्दा एक तरफ होगा। फिलहाल युवाओं को इससे क्या लाभ होगा, सरकार के लिए क्या हानि होगी, ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा। लेकिन इससे वेंटिलेटर पर पड़ी जीर्ण- शीर्ण विपक्ष को ऑक्सीजन अवश्य मिल गई है। महापुरुषों का कहना है कि किसी राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान अहम है। जब युवा वर्ग की उपेक्षा होगी तो राष्ट्र का मजबूत निर्माण कैसे होगा।
@NEERAJ SINGH

 

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