एक सफरनामा ऐसा भी...पेड न्यूज से फेक न्यूज तक।
इंसान हो या इतिहास हो समय के साथ साथ बदलता रहा है। इंसान कभी गुणों की तरफ बढता है या फिर अवगुणों तरफ । इस प्रकार अपने कार्यों व कर्मों के आधार पर अपना इतिहास पीछे छोडता जाता है। ये उसके जीवन का सफरनामा साबित होता है।विज्ञान का विकास पहले भी हुआ और आज भी हो रहा है। जैसे समय बढ रहा है उसी प्रकार विज्ञान की दुनिया बदल रही है और अपने साथ इतिहास लिख रहा है। आज जिस सफरनामे की चर्चा कर रहे हैं वो भी एक क्रांति के रूप में विकसित हो रही है। संचार क्षेत्र में सबसे अहम कडी पत्रकारिता से जुडा समाचार है जिसे हम खबर भी कहते हैं। लोगों को जानकारी देना ही समाचार है ओर माध्यम समाचारपत्र होता है। इतिहास में जायें तब पहले किसी को जानकारी देने के लिए पेड के पत्तों पर लिया सूचना दी जाती थी। पक्षियों का सहारा लिया जाता था। लेकिन बातें अब इतिहास बन गई हैं। संचार की ऐसी क्रांति आयी कि सबकुछ बदल गया और टीबी, अखबार छोड अब सोशलसाइट का जमाना आ गया। घटना घटी नही कि सूचना आपके मोबाईल पर फेसबुक,व्हाटसएप पर आ जाती है। बहुत ही तेजी बदले हालात से एक तरफ जानकारी की सुविधा मिली, वहीं दूसरी ओर दुष्प्रयोग होना शुरू हो चुका है। और पेड न्यूज से फेक न्यूज का सफर तय कर डाला। इसका इतना बडा दुष्परिणाम दुनिया को दिखने कि सरकारें तक हिलने लगी हैं। अभी हाल में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्र को 2008 के चुनाव में पेड न्यूज के लिए हाईकोर्ट ने दोषी माना है।इससे पूर्ब यूपी के क्षेत्रीय दल के विधायक उमलेश यादव की सदस्यता पेड न्यूज के चलते समाप्त कर दी गई थी। पेड न्यूज का अर्थ किसी लालच से किसी के पक्ष में बनाई गयी खबर होती है,जैसे चुनाव में खबर के लिए धन लेना, विज्ञापन लेना आदि शामिल है। ये खेल तो काफी समय से अखबारों, पत्रिकाओं, व चैनलों के माध्यम से चल रहा है। इतना ही नही चुनावों में तो भरपूर प्रयोग अब भी हो रहा है। हाल कुछ वर्षों में हजारों मामले दर्ज किये गये हैं और नोटिसें चुनाव आयोग ने जारी किया है। लेकिन जब से सोशल साईटों का विकास हुआ,पेड न्यूज का सफर फेक न्यूज तक आ गया है। इस चलन पत्रकारिता के इतिहास पर बडा सवाल खडा हो गया है। जो समाज का दर्पण कहलाता था वही अब समाज को कलंकित करने का भी काम शुरू हो गया है। इसके दुष्परिणामों समाज में अव्यवस्था फैलने का डर बढता जा रहा है। अब फेक न्यूज क्या है इसे भी जान लें। ये न्यूज सिर्फ झूठ का पुलिंदा है जोकि लागों को सही जानकारियों को भ्रमित करने काम किया जाता है। जिसके लिए बकायदा बेबसाइट चलायी जा रही है। जिसमें चीन जैसे अनेक देश अपने पडोसी देश में दुष्प्रचार करते हैं। फेक न्यूज का प्रयोग भारत सहित अनेक देशों में राजनीतिक दल अपने विरोधी दलों के खिलाफ दुष्प्रचार में करते हैं। इतना ही इसके लिए साइट के जानकार लोगों की टीम गठित करके फेक न्यूज का प्रयोग करते हैं। आम आदमी भी व्हाटसएप ,फेसबुक जैसी सोशलसाइटों का प्रयोग करते है और समाज के माहौल को बिगाडने का कार्य करते हैं। इस विषय पर देश एक नामी चैनल ने अपनी रिर्पोट प्रसारित करते हुए पेड न्यूज व फेक न्यूज के अन्य चैनलों पर भी सवाल उठा दिये। जबकि वह स्वयं पेड न्यूज व फेक न्यूज के लिए विवादित है। अनेक देशों में इसके खिलाफ सरकारों ने मीडिया पर शिकंजा कसना शुय कर दिया है। टर्की ने आठ लोगों जेल भेज दिया। अमेरिका भी इसके कानून लाने की बात कर रहा है।जर्मनी, रूस,कम्बोडिया भी इसे लेकर सख्त रवैया अपनाने लगे हैं। लेकिन इससे नाराज विश्व के अनेक मीडिया संगठन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारें आवाज दबाना चाहती हैं। 04 मार्च 2017 को इस बात को लेकर संयुक्तराष्ट्र ने भी चिन्ता ब्यक्त किया है। फेसबुक ने तीन हजार कर्मचारी फेक न्यूज रोकने के लिए इस पर लगाने की सोच रहा है इसी से इस मुद्दे की गंभीरता दिख जाती है। एक बात अवश्य है कि फेक न्यूज को रोकना नितांत आवश्यक है। वरना विश्व का इतिहास व समाज का नक्शा बदलने में देर नही लगेगी।
@नीरज सिंह
इंसान हो या इतिहास हो समय के साथ साथ बदलता रहा है। इंसान कभी गुणों की तरफ बढता है या फिर अवगुणों तरफ । इस प्रकार अपने कार्यों व कर्मों के आधार पर अपना इतिहास पीछे छोडता जाता है। ये उसके जीवन का सफरनामा साबित होता है।विज्ञान का विकास पहले भी हुआ और आज भी हो रहा है। जैसे समय बढ रहा है उसी प्रकार विज्ञान की दुनिया बदल रही है और अपने साथ इतिहास लिख रहा है। आज जिस सफरनामे की चर्चा कर रहे हैं वो भी एक क्रांति के रूप में विकसित हो रही है। संचार क्षेत्र में सबसे अहम कडी पत्रकारिता से जुडा समाचार है जिसे हम खबर भी कहते हैं। लोगों को जानकारी देना ही समाचार है ओर माध्यम समाचारपत्र होता है। इतिहास में जायें तब पहले किसी को जानकारी देने के लिए पेड के पत्तों पर लिया सूचना दी जाती थी। पक्षियों का सहारा लिया जाता था। लेकिन बातें अब इतिहास बन गई हैं। संचार की ऐसी क्रांति आयी कि सबकुछ बदल गया और टीबी, अखबार छोड अब सोशलसाइट का जमाना आ गया। घटना घटी नही कि सूचना आपके मोबाईल पर फेसबुक,व्हाटसएप पर आ जाती है। बहुत ही तेजी बदले हालात से एक तरफ जानकारी की सुविधा मिली, वहीं दूसरी ओर दुष्प्रयोग होना शुरू हो चुका है। और पेड न्यूज से फेक न्यूज का सफर तय कर डाला। इसका इतना बडा दुष्परिणाम दुनिया को दिखने कि सरकारें तक हिलने लगी हैं। अभी हाल में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्र को 2008 के चुनाव में पेड न्यूज के लिए हाईकोर्ट ने दोषी माना है।इससे पूर्ब यूपी के क्षेत्रीय दल के विधायक उमलेश यादव की सदस्यता पेड न्यूज के चलते समाप्त कर दी गई थी। पेड न्यूज का अर्थ किसी लालच से किसी के पक्ष में बनाई गयी खबर होती है,जैसे चुनाव में खबर के लिए धन लेना, विज्ञापन लेना आदि शामिल है। ये खेल तो काफी समय से अखबारों, पत्रिकाओं, व चैनलों के माध्यम से चल रहा है। इतना ही नही चुनावों में तो भरपूर प्रयोग अब भी हो रहा है। हाल कुछ वर्षों में हजारों मामले दर्ज किये गये हैं और नोटिसें चुनाव आयोग ने जारी किया है। लेकिन जब से सोशल साईटों का विकास हुआ,पेड न्यूज का सफर फेक न्यूज तक आ गया है। इस चलन पत्रकारिता के इतिहास पर बडा सवाल खडा हो गया है। जो समाज का दर्पण कहलाता था वही अब समाज को कलंकित करने का भी काम शुरू हो गया है। इसके दुष्परिणामों समाज में अव्यवस्था फैलने का डर बढता जा रहा है। अब फेक न्यूज क्या है इसे भी जान लें। ये न्यूज सिर्फ झूठ का पुलिंदा है जोकि लागों को सही जानकारियों को भ्रमित करने काम किया जाता है। जिसके लिए बकायदा बेबसाइट चलायी जा रही है। जिसमें चीन जैसे अनेक देश अपने पडोसी देश में दुष्प्रचार करते हैं। फेक न्यूज का प्रयोग भारत सहित अनेक देशों में राजनीतिक दल अपने विरोधी दलों के खिलाफ दुष्प्रचार में करते हैं। इतना ही इसके लिए साइट के जानकार लोगों की टीम गठित करके फेक न्यूज का प्रयोग करते हैं। आम आदमी भी व्हाटसएप ,फेसबुक जैसी सोशलसाइटों का प्रयोग करते है और समाज के माहौल को बिगाडने का कार्य करते हैं। इस विषय पर देश एक नामी चैनल ने अपनी रिर्पोट प्रसारित करते हुए पेड न्यूज व फेक न्यूज के अन्य चैनलों पर भी सवाल उठा दिये। जबकि वह स्वयं पेड न्यूज व फेक न्यूज के लिए विवादित है। अनेक देशों में इसके खिलाफ सरकारों ने मीडिया पर शिकंजा कसना शुय कर दिया है। टर्की ने आठ लोगों जेल भेज दिया। अमेरिका भी इसके कानून लाने की बात कर रहा है।जर्मनी, रूस,कम्बोडिया भी इसे लेकर सख्त रवैया अपनाने लगे हैं। लेकिन इससे नाराज विश्व के अनेक मीडिया संगठन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारें आवाज दबाना चाहती हैं। 04 मार्च 2017 को इस बात को लेकर संयुक्तराष्ट्र ने भी चिन्ता ब्यक्त किया है। फेसबुक ने तीन हजार कर्मचारी फेक न्यूज रोकने के लिए इस पर लगाने की सोच रहा है इसी से इस मुद्दे की गंभीरता दिख जाती है। एक बात अवश्य है कि फेक न्यूज को रोकना नितांत आवश्यक है। वरना विश्व का इतिहास व समाज का नक्शा बदलने में देर नही लगेगी।
@नीरज सिंह
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