*नीरज कुमार सिंह*
हिन्दी साहित्य के इतिहास में चमकने वाला एक सितारा अमेठी जिले की धरती पर ही जन्म लिया है वो कोई और नहीं बल्कि भक्तिकाल के निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के सूफी संत महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी थे। इनकी जयंती इसी माह के 09 जुलाई को मनायी जाती है। इस बार भी बिगत वर्षों की भांति अपनी ही जन्म स्थली पर कोई कार्यक्रम नही मनाया गया। लेकिन आज यही अमर कवि अपने ही घर में ही बेगाने हो चले हैं। माना जाता है कि लगभग 1500 ईं0 में जनपद मुख्यालय हिन्दी साहित्य में पदमावत जैसी काव्य कृतियां की रचना करके अपनी अमिट छाप छोडने से 16 किमी दूर नगरपालिका जायस कस्बा के कंचाना मोहल्ले में जन्मे मलिक मोहम्मद जायसी एक महान कवि के साथ- साथ उच्च कोटि के सूफी संत भी थे। जायसी जी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल के निर्गुण शाखा के प्रेमाश्रयी धारा के प्रमुख कवियों इन्होने अपने जन्म स्थान की पुष्टि अपनी काव्य रचना आखिरी कलाम के माध्यम से की है जोकि निम्न पंक्तियों में वर्णन किया है-
जायस नगर मोर स्थानू। नगरक नाव आदि उदयानू।।
जहां देवस दस पहंुचे आएउं। भा बैराग बहुत सुख पाएउं।।
उपरोक्त पंक्तियां यह दर्शा रहीं हैं कि मलिक मोहम्मद का जन्म स्थान जायस ही है,इसीलिए इन्होनें अपने नाम के आगे जायसी उपनाम जोडा।
उच्चकोटि के सरल स्वभाव के सूफी संत थे, मलिक मोहम्मद जायसी
ऐतिहासिक तथ्यों से जानकारी मिलती है कि इनको अमेठी रियासत के नरेश का संरक्षण मिला हुआ था। कहा जाता है कि जायसी की इच्छानुसार अमेठी के रामनगर में दफनाया गया है। जहां इनका मकबरा आज भी विद्यमान है। हिन्दी साहित्य के जानकारों को यह जरूर पता होगा कि जायसी रचित महाकाव्य पद्मावत का रानी नागमती विरह खण्ड जैसी विरह रचना हिन्दी साहित्य के इतिहास में शायद ही दूसरी रचना होगी। जायसी ने कई ग्रंथों की रचना की,जिसमें महाकाव्य पद्मावत का अपना अलग ही स्थान रखता है।
मोहम्मद बाजी प्रेम की ज्यौं भवैं त्यों खेल।
तिल फुलहिं के संग ज्यों होई फुलायत तेल।।
इन पंक्तियों से यह आभास होता है कि प्रेम रस से जायसी का कितना जुडाव था,इंगित करती हैं।इनके मोहल्ले कंचाना वासियों का कहना है कि सुनने में आता है कि ये इस मुहल्ले की शान थे,हर शाम इनके बैठक खाने पर इनकी कवितायें सुनने के लिए महफिलें जमती थी। आज उनका घर का बैठक खण्डहर बनकर मिट चुका है, बची हैं सिर्फ यादें। इन स्थानों को संरक्षित करने का प्रयास सबसे पहला कदम 1969 ई0 में मलिक मोहम्मद जायसी मेमोरियल ट्रस्ट बनाये जाने के रूप में उठाया गया। जिसके अध्यक्ष तत्कालीन सांसद विद्याधर बाजपेई एवं जनरल सेक्रेटरी शकील अहमद जायसी थे। इसकी प्रथम बैठक 1976 में हुई थी। इसी कडी में 23 नवम्बर 1988 ई0 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने जायसी के आवास को स्मारक के रूप में और एक शोध संस्थान एवं पुस्तकालय का शिलान्यास किया। श्री गांधी की ही पहल पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरायण दत्त तिवारी ने इसके निर्माण के लिए 25 लाख की धनराशि आवंटित किया था। निर्माण कार्य हुआ,लेकिन जायसी के आवास पर हुए निर्माण व पुस्तकालय के भवन की देख रेख नहीं हो पाने के कारण बच्चों के खेलने का मैदान बन चुका है तथा जर्जर हालत में पहुंच चुका है। परिसर में जगह जगह झाडियां उग आयी हैं।
मिट रही हिन्दी साहित्य के महान कवि से जुडी यादें
प्रशासन की ओर से इस ऐतिहासिक स्थलों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हां इतना जरूर हुआ कि अमेठी रामनगर स्थित जायसी के मकबरे पर पर्यटन विभाग की नजरें इनायत हुई। जिसके चलते यह जगह पर्यटन स्थल बन गया। हिन्दी साहित्य इस महान कवि से जुडी यादें अब धूमिल होती जा रही हंै। ट्रस्ट के पहले जनरल सेक्रेटरी शकील जायसी का कहना है कि प्रयासों के बावजूद इन स्मारकों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है,जबकि इस ट्रªस्ट का पदेन अध्यक्ष प्रदेश का उच्च शिक्षामंत्री होता है,तथा जनरल सेक्रेटरी मौजूदा जिलाधिकारी होता है। 09 जुलाई को उनकी जयंती मनाई जाती है। बिगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी अपने ही घर में याद नही जायसी, इससे दुखद बात और क्या हो सकती है। जायसी का जिक्र आते ही नगरवासियों के चेहरों पर फिक्रमंदी की लकीरें झलकने लगती हैं।अमर कवि से जुडी हर चीजें मिटती रहीं तो वह दिन दूर नहीं कि इस महान कवि की यादें इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाये।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें