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देश की व्यवस्था में दोष तो नहीं या वर्तमान में परिवर्तन की जरूरत

NEERAJ SINGH देश की व्यवस्था में दोष तो नहीं या वर्तमान में परिवर्तन की जरूरत भारत देश को आजादी मिले हुए 69 वर्ष बीत गये,फिर भी देश की गरीबी नहीं मिट सकी है। हां इतना जरूर हुआ है कि हमारे देश पर राज करने वाली सरकारें गरीबों को ही हटाने का प्रयास हुआ। इनका मानना है कि जब गरीब ही नहीं रहेंगे तो गरीबी कहां रहा जायेगी। हमें सन् 1947 में अंग्रेजों से आजादी जरूर मिल गई]लेकिन गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, भेदभाव व आरक्षण जैसी जंजीरों से मुक्ति नही मिल पायी है। इन वर्षों में देश विकास भी हुआ इसे झुठलाया नही जा सकता है गरीब देश की श्रेणी से उठकर विकासशील और फिर विकसित देश की राह पर चल चुका है। आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है।लेकिन इन बातों के अतिरिक्त क्या बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन को भुलाया जा सकता है।किस प्रकार भूमिहीन जनता को बडे बडे राजा-महाराजाओं को प्रेरित कर जमीन को गरीब जनता में जमीन का दान करवाया था। क्या अब ऐसा महापुरूष हैं जो ऐसा करने में सक्षम हैं। अब तो देश का सिस्टम ही बदल चुका है। देश में दो ही वर्ग बचा है अमीर और गरीब का, आज अमीर और अमीर बन रहा है वहीं गरीब और गरीब होता जा रहा है। दो के बीच का मध्यम वर्ग जोकि इनके बीच का पुल था आज वह मंहगाई की मार से विलुप्त होता जा रहा है। देश की सभी सरकारी योजनाओं का लाभ अमीर वर्ग यानी क्रीमीलेयर पा रहा है। व्यवस्था ही यही है कि गरीब का लडका डाक्टर,इंजीनियर नही बन सकता है क्योंकि कालेजों की भारी भरकम फीस नही भर सकता हैं।किसी बडे पद की नौकरी की तैयारी के लिए लाखों रूपये खर्चकर कोचिंग नही करवा सकता है। इसमें सभी वर्ग के लोग हैं चाहे सामान्य वर्ग, ओबीसी, दलित वर्ग, या फिर अलसंख्यक वर्ग हो । जब पैसा ही नही पढाने का तब आरक्षण का फायदा क्या मिल पायेगा। फायदा सिर्फ क्रीमीलेयर को ही मिल रहा है। लेकिन सत्ता की भूखी सरकारों को इन सबसे क्या मतलब है। सिर्फ वोट की राजनीति की जा रही है। कोई लैपटाप बांट रहा है तो कोई स्मार्ट फोन बांटने की बात करता है। अरे बांट तो दोगे पर इसमें पैसा कौन भरायेगा। इसके लिए पैसा है सडकों पर गड्ढे, पानी,आवास जैसी जरूरतों के लिए किसी के पास धन नही है। जरा सोचिए अगर देश में झोलाछाप डाक्टर न हों क्या सभी को चिकित्सीय सुबिधा मिल सकती है! प्राईवेट स्कूल व कालेज न हों तो सरकारें सभी को शिक्षा दे सकती हैं! आपका जबाब होगा नहीं। आजादी 69 साल बाद भी देश की सरकारें सबको चिकित्सा, सबको शिक्षा का दावा नही कर सकती हैं।देश व्यवस्था का दोष नही कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि 10-20 बच्चों को पढाने वाला सरकारी अध्यापक 40 हजार वेतन पर रहा है। वहीं प्राईवेट स्कूल का अध्यापक दो से ढाई हजार वेतन पा रहा है। देश में परिषदीय विद्यालय दो से तीन कमरे में खुल जाते हैं। वहीं प्राईवेट विद्यालय की मान्यता के लिए सात कमरे होने चाहिए। साथ अनेक मानक पूर्ण करने की बात की जाती है।वहीं सरकारी स्कूल में ऐसा कुछ नही रहता है। ये तो बानगी मात्र है। पुल गिर रहे हैं, बडे भवन अक्सर ही गिर जाते हैं। सही चिकित्सा सेवा नही हो पाती इसके भी आरोप आये दिन लगते हैं। आरक्षण देने की बात डा0 अम्बेडकर जी ने संविधान में 10 वर्ष के लिए किया था। लेकिन धीरे धीरे दशकों तक चला ठीक भी था तब की आवश्यकता थी। लेकिन अब इसे राजनीति का मोहरा बना दिया गया है। जिसके लिए संविधान निर्माता ने किया था अब उन्हें न मिलकर अमीरों के हाथों में आरक्षण नामी हथियार मिल गया है। इसका ये नतीजा है कि अमीरों के कम प्रतिशत अंक पाने वाले छात्रों का चयन हो रहा है वहीं सामान्य वर्ग का दोगुने से अधिक प्रतिशत अंक पाने वाला बेरोजगार होकर घर बैठ जा रहा है।आज इससे जहां कार्यों में गुणवत्ता नही मिल रही है। वहीं मेधावी व असफल होने पर कुंठित युवा एवं सभी वर्ग के गरीब युवा जो पैसे के विना सपना न पूरा होने के दंश झेल रहे है। शायद देश के सिस्टम को ही दोषी मानते हुए लोकतंत्र पर विश्वास करना ही न छोड दें। और आने वाला वक्त देश को अपनों से दिक्कतों का सामना करना न पडे। इसलिए आज आवश्यकता है कि 70 साल पहले की परिस्थितियों में बदलाव लाते हुए वर्तमान की आवश्यकताओं को देश की युवा पीढी के अनुरूप देश के संविधान में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जिससे देश की व्यवस्था को दुरूस्त कर सभी वर्गों को न्याय मिल सके। परिवर्तन के संत….आचार्य बिनोवा भावे जी की जयंती पर शत्.शत् नमन।

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