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देश के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के पूर्ब राजनीतिक चहल पहल तेज हो गई है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी खटिया पंचायत कर सुर्खियों में बने हुए हैं। तो भाजपा अन्य दलों के विधायकों को पार्टी में शामिल कर खलबली मचा दी है। मायावती भी रैलियां कर सभी दलों पर तीर छोडने का कार्य कर रही हैं। इन सभी के के बीच सत्तारूढ समाजवादी पार्टी इन सभी से इतर अलग ही छाप छोडकर सबसे अधिक सुर्खियां बटोर रही है। ये किसी का दलबदल कराकर या विकास एजेंडा या फिर रैलियों से नहीं बलिक आपसी कलह के कारण चैनलों व अखबारों की सुर्खियों में है। वर्ष 2012 में सत्तारूढ होते ही अखिलेश यादव के सामने सबसे बडी चुनौती उनके ही परिवार वाले रहे हैं।अब चुनाव आते आते पार्टी दो फाडों में बंटती दिख रही है। एक नेतृत्व मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल यादव कर रहे हैं,वही दूसरा खेमा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर रहे हैं। सपा का सत्ता में आने पर ही दोनों तनातनी अन्दर खाने में शुरू से ही है। पर विगत माह ये परिवारिक विवाद सतह पर आ गया जब बाहुबली मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल का पार्टी में विलय हुआ। इस पर अखिलेश ने नाराजगी दिखायी और कहा इस विलय से पार्टी की छबि खराब होगी। और उनके दबाब में विलय टूट गया। जिससे शिवपाल काफी नाराज हुए। इसी बीच कभी सपा के दूसरे नं0 के नेता रहे अमर सिंह को अखिलेश यादव द्वारा महत्व न देना अखरने लगा। शिवपाल की पैरवी से पार्टी में शामिल हुए अमर सिंह का खेल शुरू हो गया। शिवपाल गुट को अमर सिंह,मुलायम सिंह की दूरी पत्नी साधना गुप्ता का भी साथ मिल गया। जबकि अखिलेश को रामगोपाल यादव व आजम का साथ पहले से मिला है। इसी बीच अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल से शिवपाल के करीबी बाहुबली मंत्री राजकिशोर सिंह,व मुलायम के करीबी मंत्री व सीबीआई की जांच के घेरे में आ चुके गायत्री प्रसाद प्रजापति को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। ये बात दोनों बडे नेताओं को अखर गई और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया तो अखिलेश ने शिवपाल के नौ में से सात विभाग छीन लिए। बढते बवाल पर मुलायम ने रामगोपाल को दिल्ली से अखिलेश को मनाने लखनऊ भेजा,लेकिन वह मनाने में असफल रहे । हां उन्होने इस विवाद का ठीकरा अमर सिंह पर जरूर फोड दिया। मुलायम मामले की गंभीरता को देखते हुए लखनऊ पहुंचे और चाचा भतीजे में सुलह करायी। और गायत्री की मंत्रिमंडल में वापसी की घोषणा की।लेकिन राजनीतिज्ञों की माने तो पार्टी में जिस प्रकार शिवपाल व अखिलेश के लिए समर्थक लामबंद हुए इससे पार्टी को बडी क्षति की संभावना व्यक्त की जा रही है। वहीं अमर सिंह के भी सुर बदल गये हैं। सूत्रों की माने तो समाजवादी परिवार अमर सिंह की गतिविधियों पर लगाम लगाने की सोच रहा है। जिससे दोबारा कोई विवाद न आये। अन्य दलों ने इसे हाई बोल्टेज का दिया। हां अखिलेश यादव का सुलह के बाद एक बडा बयान आया कि हम आप की सारी बातें मान लेता हूं, लेकिन नेता जी से उम्मीद करता हूं कि अगले चुनाव में टिकट बांटने में मेरी सुनी जाय। इसका यही मतलब निकलता है कि टिकट बंटवारे में अखिलेश की ही चलेगी। इसी पर सुलह समझौता हुआ है। मीडिया की खबरों में मंत्रिमंडल में आधे से अधिक मंत्री व करीब सौ विधायक शिवपाल के साथ दिखे। इसी लिए सीएम अखिलेश ने टिकट बंटवारे में बडी भागीदारी की मांग की है।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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