नीरज सिंह
एक बार फिर हम सभी को विश्व हिन्दी दिवस मनाने का अवसर मिल रहा है। आज फिर बात होगी सिर्फ हिन्दी के उत्थान की, उनके गौरवमयी इतिहास की, सरल व मिठास से ओत प्रोत मातृभाषा हिन्दी की बात करेंगे। गोष्ठियां आयोजित कर बडे बडे लच्छेदार भाषणों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने का कार्य करते है। इस सब के उपरान्त एक वर्ष के लिए अपनी मातृभाषा के बारे बात करना भूल जाते है। और आने वाले 14 सितम्बर को फिर वही सब बाते करते हैं। एक अरब से अधिक की आबादी में हिन्दी बोली जाने वाली हमारी राज भाषा अपनी पहचान बनाये रखने के लिए संर्घषरत हो , इससे दुःखद बात क्या हो सकती है। विश्व के बहुत से देशों में हिन्दी बोली जा रही है। लेकिन दुःख की बात है कि अपने ही भूमि पर हिन्दी का दायरा सिमटने लगेगा तो आगे क्या होगा! अंग्रेज तो चले ंअग्रेजियत छोड गये हैं। कहते हैं कि गुलामी से आजादी देश को मिल गई लेकिन मेरी समझ से वे जाते जाते भाषा की हथकडी जरूर पहना गये । हम हिन्दी नहीं हिन्गलिश बोलने लगे हैं। अब हाल ये है कि गोष्ठियों में हिन्दी के लेकर बडे बडे व्याख्यान देने वाले अपने ही बच्चों को इंग्लिश मीडियम के स्कूल में भेज रहे हैं। घर पर बच्चे अंग्रेजी में बात करते हैं तो मां बाप का सीना तन जाता है। इंग्लिश मीडियम में बच्चों को पढाना अब समाज स्टेटस बन गया है। हिन्दी में बात करना तौहीन की बात है। लेकिन आपको विदेश में रहने वाले अप्रवासी मित्र की बात बताता हूं। उन्से जब पूछा कि आप तो विदेश में रहते हो तो इंग्लिश में ही घर पर परिवार वालों से बात होती होगी,बच्चे हिन्दी थोडे बोल पाते होगें! उन्होंने ने जो उत्तर दिया हम आवाक रह गये । हम सभी बाहर रहते हैं तो वहां के लोगों से अंग्रेजी के माध्यम से बात होती है। लेकिन अपने घर पर केवल हिन्दी ही बोलते हैं, इतना ही नही हमारे आस पास रहने वाली हिन्दी भाषी अप्रवासी परिवार आपस में मिलते हैं तो हिन्दी में ही बात करते हैं। भारत के बाहर भी हमारे अप्रवासी भारतीय विदेशों में भी हिन्दी का अलख जगाकर रखी है। ये हमारे देश के लिए गौरव की बात है। हमें भी हिन्दी के जागरूक रहना चाहिए और आने वाली पीढियों को भी हिन्दी का ज्ञान करायें। जोकि हमारे देश की मातृभाषा है। अन्त में सभी हिन्दी बोलने वालों को विश्व हिन्दी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।
बन्दना शर्मा की कबिता ने आज के हिन्दी को लेकर बना परिबेश का चित्रण बडी सुन्दरता से किया है …….
याद आता है बस हिन्दी बचाओं अभियान
क्यों भूल जाते है हम
हिन्दी को अपमानित करते है खुद हिन्दुस्तानी इंसान
क्यों बस 14 सितम्बर को ही हिन्दी में
भाषण देते है हमारे नेता महान
क्यों बाद में समझते है अपना
हिन्दी बोलने में अपमान
क्यों समझते है सब अंग्रेजी बोलने में खुद को महान
भूल गये हम क्यों इसी अंग्रेजी ने
बनाया था हमें वर्षों पहले गुलाम
आज उन्हीं की भाषा को क्यों करते है
हम शत् शत् प्रणाम
अरे ओ खोये हुये भारतीय इंसान
अब तो जगाओ अपना सोया हुआ स्वाभिमान
उठे खडे हो करें मिलकर प्रयास हम
दिलाये अपनी मातृभाषा को हम
अन्तरार्ष्टृीय पहचान
ताकि कहे फिर से हम
हिन्दी.हिन्दु.हिन्दुस्तानए
कहते हैए सब सीना तानए
… वन्दना शर्मा
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद देश में एक विस्तृत संविधान लागू हुआ। जिसमें लिखा गया कि देश का हर नागरिक अमीर- गरीब,जाति-धर्म,रंग-भेद,नस्लभेद क्षेत्र-भाषा भले ही अलग हो लेकिन मौलिक अधिकार एक हैं।कोई भी देश का कोई भी एक कानून उपरोक्त आधार बांटा नही जाता है । सभी के लिए कानून एक है। अगर हम गौर करें शायद ये हो नही रहा है। एक कानून होते हुए व्यवस्थाएं दो हो गई है। आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था संविधान के अनुसार होती हैं। लेकिन विशिष्ट लोगों के लिए व्यवस्था बदल जाती है।विशेष रूप से राजनेताओं के लिए कानून व्यवस्था का मायने ही बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर आमजन कानून हाथ में लेता है तो पुलिस उसे सफाई देने तक का मौका नही देती है और जेल में ठूंस देती है। वहीं राजनेता कानून अपने हाथ लेता है ,तो वही पुलिस जांच का विषय बता कर गिरफ्तारी को लेकर टालमटोल करती है। क्या एक कानून दो व्यवस्था नही है ! लालू का परिवार भ्रष्टाचार में फंस गया है, इसे लेकर सीबीआई की कार्यवाही को लालू प्रसाद यादव राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्यवाही का आरोप लगा रह
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