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सत्ययुग से कलयुग तक.....सफरनामा रावण का !

सत्ययुग से कलयुग तक.....सफरनामा रावण का !
‌विजयदशमी के अवसर पर आप सभी को बधाई देते हुए आइये आज हम आपसे रावण के सतयुग से कलयुग तक के सफरनामा पर बात करते हैं।पहले बात करते हैं सतयुग के रावण की जो लंका का राजा था। एक ऋषि पिता व राक्षसी माँ का पुत्र था। वो शंकर का अनन्य भक्त व प्रकाण्ड विद्वान था। एक बाहुबली,महा पराकर्मी व  अह्नकारी राजा था।  उसने अपनी बहन का बदला लेने के लिए प्रभु राम की पत्नी माता सीता जी का छल से हरण कर लंका ले गए थे। जहाँ प्रभु राम ने उसे व पूरे वंश को मार कर माता सीता को छुड़ाकर ले आये थे। तब से लेकर अबतक इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है। और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप विजयदशमी के दिन मनाया जा रहा है। और रावण व उनके परिजनों के पुतले जलाये जाते हैं। जो आज भी जारी है। लेकिन सतयुग से कलयुग आ गया है हर वर्ष रावण जी उठता है और फिर उसे जला कर मारना पड़ता है।  कभी आपने सोचा आखिर अब तक रावण को हर जलाना क्यों पड़ता हैं!  यही लगता है कि हम कागज के रावण मार देते हैं ,लेकिन मन में बसे रावण को युगों से मार नही सके हैं। यही कारण है कि मार कर भी उसे अपने व समाज में जीवित रखा है। सतयुग में रावण धरती पर एक  था,आज कलयुग में स्थिति ये है कि हर गली में एक दो रावण मिल जायेंगे। सतयुगी रावण के दस चेहरा था जो दिखाई देता था । लेकिन कलयुग के रावण में एक चेहरा  होते हुए दर्जनों चेहरे हैं जो दिखते नही हैं। उस रावण की अब के रावण अधिक खतरनाक हैं। क्योंकि ये हमारे ही बीच छुपे होते हैं और मौका मिलते ही घृणित कार्य को अंजाम देने में देर नही लगाते हैं। इसलिए हमें मन के रावण को मारने की आवश्यकता है । जब वो मर जायेगा तो हर वर्ष रावण का पुतला दहन की जरूरत नही पड़ेगी। और समाज में बैठे रावण को भी साफ़ करने जरूरत है। गन्दगी,बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार,अविकास,जैसे कलियुगी रावणों को समाप्त करने की जरूरत है। एक बात जरूर समझ में आता है कि सतयुग का रावण सीता का हरण किया और उसे अपनी रानी बनाना चाहता था , लेकिन माता सीता के सहमति का इंतजार किया और अपने संयम और इन्द्रियों पर काबू में रखा । क्या कलयुगी रावण ये कर सकता है उत्तर नही होगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि तब का रावण अब तक काफी सफर तय कर चुका है। उस रावण से अब रावण काफी बदल चुका है। तब के रावण कुछ बुराइयों के अच्छाईयां भी जुड़ी थी। अब के रावण में बुराइयों का भण्डार  है। सतयुग में रावण अकेला था तो आज हर गली व मुहल्ले रावण मिल जायेगा। पहले वाला राजा था जिसे सब जानते थे । लेकिन अब के रावणों को कोई पहचान नही पायेगा कि कौन है जब उसके कारनामें का खुलासा न हो। क्योंकि मुखौटा लगाकर घूमते रहते हैं। फ़िल्म असली नकली का गाने की लाइन कलयुग के रावणों पर सटीक बैठती है......
 ‌   लोग तो दिल को खुश रखने को क्या क्या ढोंग रचाते है। 
    भेष बदल कर इस दुनिया में बहरूपिये बन जाते हैं।।
@NEERAJ SINGH

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