कविता का नया विश्वास का नाम है कुमार विश्वास
आज की युवा पीढ़ी में कविता,कीर्तन, भजन के प्रति रोचकता कम होती जा रही है। इन विधाओं में कविता की हालत कुछ अधिक ही बद्तर होती जा रही थी। लोग कवि सम्मेलन में जाते जरूर लेकिन time कम ही देते थे। चार घंटे के बाद ही पांडाल खाली होना शुरू हो जाता था। श्रोता के नाम पर आयोजक मण्डल बचता और उनका साथ देते वे कवि मण्डली जिन्हें अपना परिश्रमिक पाना होता था। लेकिन इसी बीच साहित्यिक जगत में एक नया युवा कवि आया और ऐसा ऐसा करिश्मा दिखाया जनता सारी - सारी रात जग कर उसकी कविता की बारी का इंतजार करते हैं ।कविता को को नया आयाम देने काम किया। युवाओं में तो उसका विश्वास ऐसे जमा कि उन्हें कुछ ही समय में सुपर स्टार बना दिया । साहित्य के आंगन आने वाला ये सितारा कोई और नहीं कुमार विश्वास जी थे।.... कोई पागल समझता है,कोई दीवाना समझता है .......... जैसे गीत अथवा कविता की पंक्तियों ने युवाओं को इसका पागल कर दिया और सोशल साईट पर सारे रिकॉर्ड टूट गए। आज भी कोई फिल्मी गीत व कविता लोकप्रियता में इसे छू नहीं पायी है। हर युवा कुमार का दीवाना बन चुका था। पेशे से प्रोफेसर साहित्य के क्षेत्र में बड़ा कवि बन चुका था। उनकी ये शोहरत आज भी कायम है। यूपी के पिलखुआ कस्बे में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे कुमार विश्वास का जन्म हुआ था। इनके पिता भी डिग्री कॉलेज में शिक्षक थे। चार भाई व एक बहन में सबसे छोटे थे। अपना शिक्षण कार्य 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में शुरुआत किया । इनका सबसे पहली रचना 1997 में आई । ये कवि मंचो पर काव्य पाठ जारी रखा और श्रृंगार रस से परपूर्ण रचना सुनाते रहे जो इन्हें औरों अलग करता था । 2007 में आई काव्य रचना ....कोई पागल कहता है कोई........ ने कुमार विश्वास को बुलन्दियों पर पहुंचा दिया। इनके लाखों फैन बन गए और ये रचना ने तो युवाओं के दिल बस गई । इन्हें देश के बड़े बड़े आई आई टी कालेजों अकेले ही शो में बुलाया जाने लगा और जोकि आज भी अनवरत जारी है।इनके कार्यक्रम देश ही नही वरन् विदेशों में होने लगे । इस प्रकार एक शिक्षक अंतरार्ष्ट्रीय कवि के रूप में स्थापित हो गये। कोई शक नही साहित्य के अच्छे विद्वान कुमार विश्वास वर्तमान में प्रेमी युगल की प्रेम प्रसंग व नारी श्रृंगार रस भरी कविता के माध्यम परिकल्पना करने वाला शायद ही हो। यही वजह है कि इनकी रचनाएँ युवाओं दिलों व उनके जज्बातों को झकझोर देती हैं। और कुमार जी की कविताओं के दीवाने हैं। 2011 में अन्ना के movment में participant किया । और 2012 में आम आदमी पार्टी के गठन के संस्थापक सदस्य के रूप में politics में आ गये।और 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से चुनाव लड़ा। और इनके सामने कांग्रेस के राहुल गांधी व बीजेपी से स्मृति ईरानी थी। चुनाव में कुमार जी हार गये। ये उनके जीवन का नया अनुभव था। चुनाव के समय भी इनका कवि रूप देखने मिल ही जाता था। विवादों से इनका पुराना ही रिश्ता रहा है। लेकिन ये मदमस्त कवि चलता ही रहा और ऊंचाइयों को छूता रहा है। एक समय ऐसा भी था बहुत सारे कवि थे जो इन्हें मंच पर साथ बैठाने में भी गुरेज करते थे क्योंकि हम कस्बाई युवक लगते थे। इस बात को एक चैनल के इंटरव्यू स्वीकार किया और बताया कि मैंने नया रास्ता निकाला कि कवि सम्मेलनों हमने हिंदी के साथ साथ शायर भी बुलाने लगे ।धीरे धीरे ये तरीका सफल हुआ।औए मुझे भी प्रसिद्ध मिलने लगी। कुमार जी ने कहा कि हम शहरी नही कस्बाई ही बन कर रहना चाहता हूँ क्योंकि यही मेरी पहचान है। गुरु से बने कवि और फिर राजनीतिक के इस सफर में इन्होंने गुरु के साथ साथ आज के कवि जीवित रखा है।आज भी IIT कालेजो में छात्र/छात्राओं को प्रेम से परिपूर्ण गीत सुनाते हैं तो संस्कारों का पाठ भी पढ़ाते हैं।अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना है कि जिस दिन देश में भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा, उस दिन से राजनीति को छोड़ अपनी कविताओं में रम जाऊँगा। मैं हूँ कवि, शोहरत न अता करना मौला,एक पगली लड़की बिन ,होंठों पे गंगा हो जैसे गीतों ने कविता साहित्य में अपना परचम लहराया है। इतनी प्रसिद्ध पाते हुए भी कुमार विश्वास एक कस्बाई की छवि में जीना चाहते हैं, कवि के रूप में रहना चाहते हैं। ये बातें उनकी ही रचना में झलक रही है....
कोई मंजिल नहीं जंचती, सफर अच्छा नहीं लगता,
अगर घर लौट भी आऊ तो घर अच्छा नहीं लगता।
करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है,
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।।
आज 05 सितम्बर है यानी शिक्षक दिवस , एक शिक्षक का सफल सफरनामे की बात करना उस शिक्षक को इससे अच्छा सम्मान व आदर क्या हो सकता है......।
@NEERJ SINGH
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