सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या लिखूँ ,क्या न लिखूँ..........


इस टाइटल को देख आप सब सोच रहे होंगे कि ये क्या लिख दिया !  मैं कोई टॉपिक सोच ही रहा था कि जिस पर लिखना शुरू करूँ।  देश के हालात ही ऐसा है कि सच लिखना है तो नाराजगी भी झेलने के लिए तैयार रहना है।  समाज की पहली कड़ी मानव है, जिसका स्वभाव भी आज कुछ अलग हो हो चला है । इसका जिम्मेदार टेंशन से भरी जिंदगी है या हमारा समाज है। इसी उधेड़बुन में जिंदगी गुजर रही है। बुजुर्गों की बात माने आधुनिकता भरी जिंदगी में सुख सुविधा व विलासिता भरी है। लेकिन वो शान्ति,अपनत्व,दूसरों के दुख सुख में निस्वार्थ सहभागिता अब नही दिख रही है। लेकिन आज भागम भाग जिंदगी में ये सारी चीजे गायब हो चली है।  हाँ इतना जरूर है कि  पर हाल चाल होता रहता है। अब सवाल ये है कि इससे आपस में अपनत्व बढ़ता है ,शायद नही। लोगों में दूसरों के लिए टाइम नही होता है। बहाना होता है बिजी हूँ। मानता हूँ कि आपके पास टाइम नही है।  लोगों के सुख दुःख में जाते हैं ,कुछ देर बैठे और मेजबान से कहते भैया चलते हैं,और भी कुछ काम है। लेकिन होता ये  है कि घर पर पहुंच कर टीवी,या मोबाइल में बिजी हो जाते हैं या फिर किसी होटल या ऑफिस में बैठ कर गपशप करते हैं। ये आज के समाज का नमूना भर है। एक मानसिकता बन चुकी है कि दूसरों के लिए टाइम सिर्फ औपचारिकता भर के लिए ही हो।  समाज में कैसे कैसे केस दिख रहे हैं कि छोटे छोटे बच्चों को भी हैवानियत का शिकार बनाया जा रहा है। गुरुग्राम का प्रद्युम्न हत्याकांड इसका जीता जागता उदाहरण है। मानव स्वभाव में इस आधुनिकता भरे जीवन में जिस तरह बदलाव दिख रहा है ,इसकी भयावहता से डर लगता। जहाँ रिश्तों व सम्बंधों का कोई मायने नही होगा। लोंगों के जीवन में अपनापन,भाईचारा,परोपकार, परस्वार्थ ,संस्कार जैसे शब्दों का कोई मायने नही होगा।  लोग जाति, धर्म,समाज व देश नही सिर्फ अपने लिए ही जीवन जीना पसंद करेंगे। इसकी झलक शहरी क्षेत्रों के बड़े बड़े महानगरों में दिखने लगी है। कोई सड़क पर तड़प रहा है,उसकी मदद के बजाय वीडियो बनाना ज्यादा आवश्यक समझते हैं। राजनीति के लोगों को समाज का रूप ही बदल कर रख दिया है। ये जाति, धर्म,के नाम पर देश को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं। इस लिये लोगों की नजर में राजनीति की छवि खराब कर दिया है। और अपने को अपने ही समेटने का कार्य कर रहे। सही है जब राजनीतिक दलों की छवि नही ठीक होगी तो सरकार से क्या लेना देना ,जब सरकार से मतलब नही तो देश से इन्हें क्या मतलब है। अगर समाज की सेल्फ सोच को मुख्य धारा में लाने की जरूरत है । सबसे पहले हमारे राजनीतिक दलो व उनके नेताओं की सोच बदलनी होगी तभी समाज की सोच बदलने में कामयाबी मिलेगी। लोकतंत्र में राजनीतिक  लोग ही मार्गदर्शक होते हैं। जिस संस्कृति को बड़े बड़े आक्रान्ता नही बदल पाये चाहे सिकंदर रहा हो,या फिर मो0 गोरी,मुगल शासक, अंग्रेज शासक । किसी ने हमारी संस्कृति को बदलने में सफलता नही मिली। लेकिन अब आधुनिकता भरी जिंदगी हमारी संस्कृति व संस्कार को प्रभावित कर रहा है। अगर मनुष्य का स्वभाव बदला तो समाज का स्वभाव बदलने में देर नही लगेगी। महान कवि व गीतकार प्रदीप जी की नास्तिक फ़िल्म में लिखे वो गीत ......
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,
कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान,
सूरज ना बदला,चाँद ना बदला,ना बदला रे आसमान,
कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान ||
आज के मानवीय दृष्टिकोण में बिल्कुल सटीक बैठ रही है। जिसकी परिकल्पना 60 वर्ष पहले अपने इस गीत में लिखा था।
‌@NEERAJ SINGH

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

काश .......कोई मेरी भी सुनता !

  प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में दीपोत्सव मनाया जा रहा है,क्योंकि इसी दिन राक्षसराज रावण का अंत करके लंका की जनता को उस की प्रताड़ना से मुक्त करा कर अयोध्या लौटे थे I इस दिन मां लक्ष्मी, गणेश व कुबेर की पूजा भी की जाती है और अपने-अपने घरों को दीप जलाकर सजाया जाता है I इस बार भी अयोध्या में 12 लाख दीप जलाकर योगी की उत्तर प्रदेश सरकार वर्ल्ड रिकार्ड बना रही है I यह एक अच्छी पहल है, होना भी चाहिए ,जिससे कि आने वाली पीढ़ियां हमारी संस्कृति को समझ सके, उन्हें जान सके I लेकिन देश भर में मनाये जा रहे दीपावली त्यौहार पर आर्थिक नीतियों में ग्रहण की तरह घेर रखा है I पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने जनता का दिवाला निकाल दिया है I विगत 02 साल में जहां कोरोना देश की नहीं आम जन के बजट को हिला कर रख दिया है I महंगाई बढ़ने लगी I अब जबकि कोरोना महामारी से लोग उबरने लगे हैं I देश की अर्थव्यवस्था सुधरने लगी है I लेकिन महंगाई पर अभी भी सरकार नियंत्रण करने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो पा रही है I इसी बीच पेट्रोलियम पदार्थों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है और यह अब शतक लगाकर पार हो चुका है I ...

संकुचित राजनीति की बदरंग तस्वीर

    जाति-धर्म के फैक्टर में, कोई नहीं है टक्कर में....उक्त स्लोगन आज की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय बिल्कुल सटीक बैठता है I विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में वर्तमान में जिस तरह की राजनीति चल रही है ,आने वाले समय में विषम परिस्थितियों को आमंत्रित करने का कार्य किया जा रहा है I जो न तो लोकतंत्र के सेहत के लिए ठीक होगा न ही आवाम के लिए ही हितकारी होगा I  हमारे राजनीतिक दलों के आकाओं को भी चिन्तन करने की जरूरत है कि सत्ता के लिए ऐसी ओछी राजनीति कर देश की स्थिरता को संकट में डालने का कार्य कर रहे हैं I देश के बड़े-बड़े  अलम्बरदार माइक सम्हालते ही सबसे बड़े देश-भक्त बन जाते हैं I लेकिन चुनाव आते ही वोट पहले और देश बाद में होता है I मंचों पर जो विचारधारा प्रस्तुत करते हैं ,वो चुनावी रणनीति में बदल जाती है I बस एक ही एजेंडा होता है जीत सिर्फ जीत इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं I पार्टी का सिद्धांत तो तेल लेने चला जाता है I अभी हाल के दिनों में कुछ राजनीतिक घटनाओं में उक्त झलक दिखी I पंजाब, उत्तर प्रदेश में 2022 में चुनाव होने हैं I जातिगत आधार पर राजनीति शुरू ह...

यूपी चुनाव ने गढ़े नये आयाम

  यूपी में का ....बा ! यूपी में बाबा ... जैसे गीतों की धुन विधानसभा चुनाव 2022 में खूब चले अरे उठापटक के बीच आखिरकार विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ I एक बार फिर योगी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने जा रही है I संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अनेकानेक सवाल भी अपने पीछे छोड़ कर गया है I इस बार यह चुनाव धर्म जाति पर लड़े या फिर राष्ट्रवाद सुरक्षा सुशासन महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चुनाव हुए ? राजनीतिक दलों ने मुद्दे तो खूब उठाएं धर्म जाति दोनों पिचों पर दलों ने जम कर बैटिंग किया चुनाव की शुरुआत में जिन्ना का प्रवेश हुआ हिंदुत्व मुद्दा बना कई दलों में मुस्लिम हितैषी बनने को लेकर होड़ मची दिखी चुनाव का अंत में EVM पर आकर टिक गया I चुनाव काफी दिलचस्प रहा लोगों में अंत तक कौतूहल बना हुआ था कि किसकी सरकार बनेगी I फिलहाल योगी सरकार बन ही गई इस चुनाव में सभी मुद्दों दोही मुद्दे सफल हुए जिसमें राशन व सुशासन I ये सभी मुद्दों पर भारी रहे I पश्चिम उत्तर प्रदेश में सुशासन तो पूर्वी में राशन का प्रभाव दिखा I इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय का एक तरफा वोटिंग ने समाजवादी पार्टी को 125 सीटों तक पहुं...